धनु: पौष्पं मौर्वी मधुकरमयी पञ्च विशिखा
वसन्तः सामंतो मलयमरुदायोधनरथः
तथाप्येकः सर्वं हिमगिरिसुते कामपि कृपा
मपांगात्ते लब्ध्वा जगदिदमनंगो विजयते
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! क्लीं क्लीं क्लीं !
! साध्यम !
! क्लीं क्लीं क्लीं !
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Saturday, June 26, 2010
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